चोटी की पकड़–102
मैंने कहा जात की है, कहीं बैठ जा, या बैठा ले। राम दोहाई, आँख झप जाती है जब देखता हूँ, तेरे लिए बारोमहीने कातिक है। सिपाही कुत्ते जैसे पीछे लगे रहते हैं। बहंगी में तीन-तीन को लादकर फेंकूँ।"
"अच्छा चला जा। देखें, कितनी जानकारी रखता है। इनाम में एक थान के दाम मिलेंगे; मगर पक्की खबर दे।"
मटरू खुश होकर जहाज़ घाट की ओर चला।
राज का ही जहाज़ है। मटरू जानता है। आदमियों में सबसे दबा, कहार। पहचानकर सबने राह दे दी। उस वक्त तक राजा या एजाज का आना नहीं हुआ था। मटरू सारा जहाज़ घूम आया। फिर एक किनारे खड़ा हुआ।
आधे घंटे के अंदर एजाज की पालकी आई। एजाज किनारे उतरकर काठ की सीढ़ी से जहाज पर गई-इनाम भेजा।
राजा की सवारी आई। शान से चढ़े। लोग चढ़ने लगे। जहाज खुला।
मटरू ने एक-एक को देखा। रह जानेवाले लोगों के साथ लौटा। एक पहर दिन चढ़ चुका था।
लौटकर मुन्ना से एक-एक बात कही। और पुरस्कार के लिए लाचार निगाहों से देखकर मुस्कराया।
मुन्ना समझ गई। संवाद से खुश होकर पीपलवाले चबूतरे के पास दुपहर ढलते बुलाया। मटरू मानकर खुले दिल से दूसरे काम को चला। मुन्ना पुरानी कोठी चली।